Saturday, July 28, 2012

दो कविताएँ

१. "मुन्नी के लिए "

चलो दोस्तों, 
आज हम सीढियां लगाकर 
आसमान पर चढ़ते हैं,  
तोड़ लाते हैं बीस-तीस तारे,
काट लेंगे थोड़े से बादल  
और कुछ रंग मार लेंगे इन्द्रधनुष से | 

फिर बादलों पर  
बिखेरकर रंग, 
उनके ऊपर चिपका देंगे तारे 
और बनाकर उसका गुलदस्ता 
रख देते हैं मुन्नी की झोपड़ी में | 

उसको जन्मदिन का तोहफा दे पाए, 
इतने पैसे नहीं हैं 
उसकी माँ के पास |

इसलिए दोस्तों,
हम सब मिलकर देते हैं 
आज मुन्नी को, 
उसके जन्मदिन पर 'सरप्राइज़' |

२. "बस, कुछ दिन और"

इस भयावह समय में पैदा हुए, 
मेरे देश के बच्चे ,  
बस, कुछ दिन और |

मैं समझ सकता हूँ 
तेरी आँखों की उदासी, 
मैं जानता हूँ तेरी पीड़ा,
मैं महसूस कर सकता हूँ, 
तेरे सीने की जलन |

मैं जानता हूँ कि 
फूल पर तितली का बैठना, 
चिड़ियों का चहचहाना 
और रात को सपने में परियों का आना, 
इस  सब की जगह 
तूने सुनी हैं  
गोलियों की आवाजें,
सपने में देखी हैं रोटियाँ, 
और जाना है केवल अँधेरे को |

पर हताश मत हो, 
मेरे देश के बच्चे ! 
कि कुछ दिन में सब ठीक हो जाना है ;
कि अभी बाकी है आनी
अँधेरे के बाद की रौशनी ;
कि अभी देखनी है 
इंसानियत की खूबसूरती ;
कि एक दिन सब कुछ बदलना है 
तुझे और मुझे मिलकर ;
कि अभी तुझे जीना है | 

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