Thursday, July 23, 2009

चैन,सुकून,शान्ति

इस तरह मुँह फुलाए क्यूँ बैठे हो
गुस्सा न हो
अब मुझे क्या मालूम था
तुम सचमुच ही जान निकालकर देखोगे
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
"तुम्हारे लिए मैं जान दे सकता हूँ"
मेरा ऐसा कहना तुम्हें नाटकीय लगता है
क्या कहा तुमने?
"हर कोई यही कहता है-इसमें नया क्या है"
हाँ सच है हर कोई कहता है
और शाहरुख़ खान ने भी पचासों फिल्मों में कहा है

मुश्किल तो यही होती है
जो हम कहना चाहते हैं
वह कोई पहले ही कह चूका होता है
और जो हम करना चाहते हैं
वह भी लोग बहुत पहले कर चुके होते हैं
प्रेम,त्याग,समर्पण,हत्या और आत्महत्या

"नहीं,मैं झूठा वादा नहीं करता ..सच में"
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . .
अब तुम्हें जान नहीं मिली तो भले झूठा कहो
वह तो थी ही नहीं
तुमने पहचाना नहीं
मेरी आत्मा बहुत पहले मर गयी थी
गोबर से लिपे आँगन की उपटती पपड़ियों की तरह
छीली गयी थी,परत दर परत

आजकल तो बस अपनी लाश कन्धों पर लादे फिरता था
चलो वो भी बोझा उतर गया