Saturday, August 25, 2012

"षड़यंत्र"

हो सकता है 
आपको एहसास न हो

पर आपके जन्म के बाद से 
स्कूलों में क्रूर शिक्षकों के हवाले कर दिया जाना,
पतंग उड़ाये जाने से रोकना;
मार्क्स, स्कॉलरशिप, 
ऊँचे विश्वविद्यालय, नौकरियाँ 
पैसा, शादियाँ;
सब कुछ हिस्सा है ,
सांड से बैल बनाये जाने की प्रक्रिया का |

स्वतंत्र से पालतू बनाये जाने का ,
एक ही षड़यंत्र है
यह सब |

Saturday, August 18, 2012

"________"

हर दंगे-फसाद के दौरान 
हम इतिहास में लौट आते हैं ; 
खूब अच्छी तरह ढूँढ़ते हैं कारणों को, 
अपने इंटेलेक्चुअल होने का परिचय देते हुए ; 
और 
दंगाई आगे बढ़ते जाते हैं |

Saturday, July 28, 2012

"________"

मैं लिखना चाहता हूँ 
एक कविता 
कि समेट लूं सारा दर्द
और उनके साये में बसी तुम्हारी ज़िन्दगी ;
फिर जब मैं आऊं तुम्हारे पास,
तो समेट लो तुम
मुझे अपने आँचल में |

मैं भुला देना चाहता हूँ 
तुम्हारे सारे दुःख, 
सारे दुस्वप्न, 
जिन्होंने 
रोक रखा है तुम्हें 
देखने से,
इस हसीन मौसम के नज़ारे |

मैं तुम्हें उठा के वहाँ से 
जहाँ हो तुम, 
बिठा देना चाहता हूँ वहाँ,
जहाँ से दिखती है 
तुम्हारी खिलखिलाती हंसी |

मैं चाहता हूँ ये ,
मैं चाहता हूँ वो ,
रोज़-ओ-शब-ओ-शाम-ओ-सहर,
हर पल, निश्चल ;

पर जाने कौन है , 
जो हमारे चाहने के बावजूद 
मटिया-मेट कर जाता है सब कुछ ;
और मैं सोचता रह जाता हूँ
कि चाहने से आखिर क्या होता है ?

"उसके साथ रहकर"


उसके साथ रहकर मैंने जाना
कि विद्रोह करना अपराध नहीं है, 
पर विद्रोह न करना है ;
और गुलामी की परिस्थितियों में जीते रहना
आपका आदमी न होकर 
हीरामन तोता होना है |

उसके साथ रहकर मैंने जाना
कि 'क्रान्ति' महज़ किताबों में नहीं मिलती,
नहीं पूछे जा सकते 
औरतों से केवल घर-परिवार के ही सवाल |

उसके साथ रहकर 
पृथ्वी को पकड़कर घुमाया जा सकता था, 
आसमान दूर नहीं रह जाता था
और सागर बन जाते थे हमारी 
गोदौलिया वाली रोड के गड्ढे |

उसके साथ रहकर 
कितना आसान था ,
अपनी लाश को फेंक देना |

--(सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता से प्रेरित)