Sunday, May 23, 2010

पाँच कविताएँ

१:
कविताएँ हैं विस्मयकारी दवाएं ,
जो हमें जिंदा रखती हैं
जब हम जीने के ख्वाहिशमंद हैं ;
और जब हम मरना चाहते हैं
तब भी जिंदा रखेगी ,
सुनाकर मृत्यु के कुतूहलपूर्ण विवरण |


२:
चौबीस घंटे ,
सातों दिन ,
बारहों मास ,
और सम्पूर्ण ज़िन्दगी |

ज़िन्दगी के किसी एक पल को जीने में
उसने ली थी कविताओं की मदद,
इसीलिये वह नहीं निकल सकता सारी ज़िन्दगी भर
कविताओं के जाल से |

कविताएँ हैं एक तिलिस्मी जाल |


३:
"कविताएँ लिखना "
अनिवार्य किया जाये
इस देश के प्रत्येक ज़िम्मेदार नागरिक के लिए ;
ताकि जब किसी चोट से
टूटे कोई नाजुक दिल,
तो कविताएँ लिखकर रोकी जा सके
अनापेक्षित हृदयाघात से मौत |



४:
कवि एक,
स्थायी भाव दस,
संचारी भाव तेतीस ,

पर वह एक भाव ,
इस कदर घुस गया है
अन्तःस्थल की गहराइयों में,
कि केवल एक कविता लिखकर
नहीं मिलती उसके मर्माहत मन को संतृप्ति |
एकमात्र कविता नहीं है पर्याप्त अवरोध,
फूट पड़े सोते को रोकने के लिए |

इसीलिये वह कवि
पुनश्च और पुनश्च
उसी एक भाव पर लिखा करता है अनेकों कविताएँ |


५:
वह नहीं जानता
वे दोनों (कवि और कविता )एक दूसरे से कैसे मिले थे ,
पर जानता है जरूर,
समय के साथ उनके रिश्ते हुए हैं
प्रगाढ़ से प्रगाढ़तर |

जब-जब कविता हटाती है
उसके चहुँ ओर व्याप्त धुंध ,
और अंधियारे अंतस को बना देती है
स्फुरित एवं गुंजरित ,
तब कविता उसे लगती है
माँ जैसी पूजनीय
और आराध्य की तरह अनुकरणीय ;

फिर जब उसे
फूल में , पात में / ऋतुओं की बाट में
टीन में , कनस्तर में / मिटटी में , पत्थर में
चाँद में सूरज में / या पश्चिम में , पूरब में
यहाँ तक कि
शून्य में भी दिखती हैं कविताएँ ,
तब कविता बन जाती है उसकी प्रेमिका ,
जिससे निर्लिप्त होकर वह किया करता है प्रेम |

और फिर जब वह भावना को समेटकर
एक कविता को देता है जन्म ,
और पालता है उसे बड़े नाज़ से ,
तब कविता में उसे दिखती है बेटी
जिसे बड़े होता देख उसे हुआ करता है हर्ष |

यही क्रम चलता है अनवरत ,
और बिना जाने कविता के साथ रिश्ते ,
तिलिस्म में बँधकर कविता के
वह लिखता रहता है ;
एक के बाद एक
अनेकानेक कविताएँ |