Saturday, March 28, 2009

परछाई


बचपन में जब मैं गाँव की गलियों में चलता था
तब मेरे साथ चलती थी मेरी परछाई

वही परछाई ....
कभी लम्बी लगी कभी छोटी
कभी आगे तो कभी पीछे होती
कभी दीवारों पर चलती
और कभी पेड़ों को छूती

ऐसा भी हुआ ...
जब हमने अपनी परछाई को दूसरों की परछाई से बड़ा करना चाहा
और कभी दूसरों की परछाई कुचल देनी भी चाही
कभी आगे दौडे तो कभी पीछे हटे
किसी के सर पर पैर रखे तो किसी के हाथों से पैर मिलाये
इसी तरह दिन बीते अपने
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एक रोज जब मैं बड़ा हुआ
तो देखा मेरे साथ न थी वो परछाई
कहीं गायब हो गयी है
उसी की तलाश कर रहा हूँ

::: :) DC (: :::

7 comments:

दिपाली "आब" said...

gud one dharmendra ji

वन्दना अवस्थी दुबे said...

स्वागत है......शुभकामनायें.

DC said...

@ deep ji, @ vandana ji
आप लोगों की हौसला-अफजाई से सच में मेरे हौसले में वृद्धि हुई है,वो
शायद परछाई ढूँढने में मेरी मदद करे ....
शुक्रिया..

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

very nice, narayan narayan

अभिषेक मिश्र said...

अच्छी पोस्ट. स्वागत ब्लॉग परिवार में.

Sanjay Grover said...

ऐसा भी हुआ ...
जब हमने अपनी परछाई को दूसरों की परछाई से बड़ा करना चाहा
और कभी दूसरों की परछाई कुचल देनी भी चाही
कभी आगे दौडे तो कभी पीछे हटे
किसी के सर पर पैर रखे तो किसी के हाथों से पैर मिलाये
इसी तरह दिन बीते अपने

mane ya na mane par lagbhag har safal aadmi ki safalta ke peechhe yahi FORMULLA hota hai. Aatm-vishleshan aur aatm-sweekar kuchh samajhdar, samvedansheel aur saahsi log hi kar paate haiN. Badhaayi.

डिम्पल मल्होत्रा said...

honesty hai yaha..