Saturday, March 28, 2009

एक तलाश


मैने बरसो तुम्हे तलाशा है
कई सदिया गुजर गयी है
तुम्हारी राह देखते हुए

दिन की तन्हाइयों में
या रात की गहराइयों में
सदा करता रहा आस
कब पूरी हो तुम्हारी तलाश

बादलों की ध्वनि में
मुझे सुनाई दी तुम्हारी आवाज़
और बसंती हवाओं में
महसूस हुआ तुम्हारा ही साज़

भोर के कोहरे में
दूर दिखाई देता तुम्हारा अक्स
बारिश की बूँदों में
मन को भिगोता तुम्हारा दृश्य

खामोश पगडंडी पे आहट की आस
चातक सी प्यास और नक्षत्र की तलाश
टूटते दरखतों और ढहते मकानों के बीच
करता रहा जीवन की तलाश

तुम जीवंत- अजीवंत प्रतिमानों में व्याप्त
या जीवन तुममें समाहित
पर मेरे ह्रदयांगण में है अटूट विश्वास
पूरी होगी तुम्हारी तलाश

::: :) DC (: :::

3 comments:

kotuli said...

are mere bhai tu sayri kab se likhne lga yar
realy yar tere es talent ko to mai jan hi nhi paya yar
realy great yar
mast likha hai yar

DC said...

@ kotuli
कुछ मोती होते हैं जो सागर तले डूबे रहते हैं ..
यदि प्रयास किया जाये तो वो निकल भी आते हैं
.
.
मैं अपनी कविता को मोती तो नहीं कह रहा ..ये तो तुम्हें निर्धारित करना है कि ये मोती है या कोई पत्थर
.
.
शुक्रिया ..तुम्हे कविता पसंद आई

डिम्पल मल्होत्रा said...

kitni bhi barish ho chatk ki pyaas nahi bhujti ous ke bina..