.........इस उद्देश्यहीनता में छिपा हुआ उद्देश्य है कि वह उद्देश्य पुनः उद्देश्यहीनता है,बुझ जाने की मांग है........ .....अभिप्राय मैं नहीं जानता,तुम्हें जानता हूँ, और जानता हूँ कि जितने स्वप्न मैंने देखे हैं,सब तुममें आकर घुल जाते हैं.........("शेखर: एक जीवनी" से )
Saturday, March 28, 2009
एक तलाश
मैने बरसो तुम्हे तलाशा है
कई सदिया गुजर गयी है
तुम्हारी राह देखते हुए
दिन की तन्हाइयों में
या रात की गहराइयों में
सदा करता रहा आस
कब पूरी हो तुम्हारी तलाश
बादलों की ध्वनि में
मुझे सुनाई दी तुम्हारी आवाज़
और बसंती हवाओं में
महसूस हुआ तुम्हारा ही साज़
भोर के कोहरे में
दूर दिखाई देता तुम्हारा अक्स
बारिश की बूँदों में
मन को भिगोता तुम्हारा दृश्य
खामोश पगडंडी पे आहट की आस
चातक सी प्यास और नक्षत्र की तलाश
टूटते दरखतों और ढहते मकानों के बीच
करता रहा जीवन की तलाश
तुम जीवंत- अजीवंत प्रतिमानों में व्याप्त
या जीवन तुममें समाहित
पर मेरे ह्रदयांगण में है अटूट विश्वास
पूरी होगी तुम्हारी तलाश
::: :) DC (: :::
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3 comments:
are mere bhai tu sayri kab se likhne lga yar
realy yar tere es talent ko to mai jan hi nhi paya yar
realy great yar
mast likha hai yar
@ kotuli
कुछ मोती होते हैं जो सागर तले डूबे रहते हैं ..
यदि प्रयास किया जाये तो वो निकल भी आते हैं
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मैं अपनी कविता को मोती तो नहीं कह रहा ..ये तो तुम्हें निर्धारित करना है कि ये मोती है या कोई पत्थर
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शुक्रिया ..तुम्हे कविता पसंद आई
kitni bhi barish ho chatk ki pyaas nahi bhujti ous ke bina..
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