Monday, August 3, 2009

ये जख्मों का किस्सा पुराना है...

ये कैसी हलचल है,कैसा आना-जाना है
जाओ,मयकशी है यहाँ,ये मेरा आशियाना है
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वक़्त ने भुला दिए हैं,अब न कुरेदो इनको
गोया जल उठूँगा,ये जख्मों का किस्सा पुराना है
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कौन जाने अबकी बिछ्ड़े तो कल को कब मिलें
आजमा ले आज,जितना आजमाना है
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आवारा-मिज़ाजी हमारी सीखने ही न देगी
क्या छिपाना है जहाँ में और क्या दिखाना है
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बेसबब इंतज़ार में रुत गयी यूँ ही
वाँ बेरुखी का आलम है,हर पल बहाना है
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मुश्किलों से जोडो यारी,बतलायेंगी वही
समझते हैं जिसको अपना,शख्स वो बेगाना है

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