वे बादलों पर बैठकर आसमान घूमने के दिन थे
महकते फूलों पे बैठी तितलियाँ पकड़ने के दिन थे
वे पोसमपा खेलने झूला झूलने के दिन थे
नंगे पाँव गाँव की सरहदे पार करने के दिन थे
वे शीशम की छाँव तले चिड़ियाँ निहारने के दिन थे
रहट की बाल्टियाँ चढाने,उतारने के दिन थे
वे अलस्सुबह दोस्त को बुलाने के दिन थे
किरपू के बाग से करोंदे चुराने के दिन थे
वे नीम से कौवों को भगाने के दिन थे
बहती पुरबई सीने से लगाने के दिन थे
वे अधपके बेर चबाने के दिन थे
वे बेसुरी बांसुरी बजाने के दिन थे
अम्मा से चवन्नी पाने के दिन थे
किताबों में फूल छिपाने के दिन थे
वे रेत में पाँव बनाने के दिन थे
रंगीन गुब्बारे उडाने के दिन थे
बकरियों को मेड़ों पे चराने के दिन थे
छत से काई की परतें हटाने के दिन थे
भोली बहना को सताने के दिन थे
माँ को हर बात बताने के दिन थे
वे टंकी में पैर डुबाने के दिन थे
मदमस्त अंदाज़ में रोने गाने के दिन थे
बिना शरमाए नंगे नहाने के दिन थे
खाते,पीते फुर्र उड़ जाने के दिन थे
सोंधास लिए लायी-चना खाने के दिन थे
मिटटी के घर बनाने-गिराने के दिन थे
नयी बुश्शर्ट पहनकर इतराने के दिन थे
अरहर के पेड़ों में छिप जाने के दिन थे
वे रूठने के बाद मन जाने के दिन थे
कल्पना की उडानें उडाने के दिन थे
वे सोये हुए अल्हड ख्वाबों से दिन थे
सुर्ख महकते हुए नर्म गुलाबों से दिन थे
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