Thursday, September 10, 2009

हमारी दुनिया बहुत भिन्न है

सृजन का सौंदर्य हो
या धर्म की पराकाष्ठा  
न्याय,संस्कृति,साधन  
बल,बुद्धि और धन    
साथ में  
भक्ति,ढोंग,पाखण्ड  
क्रोध,शोक,रोग  
वासना और निर्लज्जता  
सब कुछ तुम्हारे साए में रहते हैं  
हमारे पास है केवल  
पसीने और कीचड़ की दुर्गन्ध  

हमारे शब्द सीमित हैं  
और शब्दों के मायने भी  
हमारी भुजाएँ 
पहाड़ काटने वाली शक्ति पाकर  
बँधी रहती हैं 
और हमें नहीं सिखाया जाता  
इच्छाएँ करना  
बल्कि हम स्वतः ही सीख जाते हैं  
इच्छाओं और अभिलाषाओं का दमन करना  

हमारे सपनों को खा जाते हैं  
युग्मों में उड़कर आने वाले  
बड़ी चोंचों वाले गिद्ध  
और यदि बच भी जाएँ  
तो पड़े-पड़े हो जाते हैं जंग-ग्रस्त  

तुम्हारी और मेरी दुनिया  
इतनी भिन्न है कि 
हम अलग-अलग प्रजातियों का  
प्रतिनिधित्व करते हैं  

तुम्हारी दुनिया चमचमाती है  
कारों में दौड़ती है  
और समय से पहले बालिग़ हो जाती है  
तुम्हारी दुनिया में  
देशी,विदेशी संगीत की लहरियाँ हैं  
मैकडोनाल्ड से लेकर  
इन्टरनेट तक का  
खुशहाल संसार है  
तुम्हारी दुनिया को 
एकरसता से मोहभंग भी हो जाता है  
इसलिए  
गगनचुम्बी इमारतें बनाती है  
करोड़ों के जुए खेलती है  
और कभी-कभी  
क्लबों में फूहड़ता से नाचने भी लगती है  

हमारी दुनिया  
बरगद के ठूंठ किनारे बने  
मटमैले छप्परों में जन्म लेती है  
गँदले नालों में पलती है 
और बिना बोर्नवीटा खाए वृद्ध हो जाती है  
समय से पहले  
हमारी दुनिया  
कारखाने सिर पर उठाकर चलती है  
चैत की गर्म दुपहरी में जीती है  
कोयलों में पलती है  
और गुमनाम होकर वहीं दफ़न हो जाती है  

हमारे बदन में भरी हुई है  
असहनीय दुर्गन्ध  
और हमारे चेहरे पर हैं  
कीचड़ के धब्बे  
जिन्हें तुम हिकारत भरी नज़रों से देखा करते हो  

हमारी दुनिया है  
आशाओं,न्यूनताओं की दुनिया  
और न्यूनताएँ देखने से  
तुम्हारी आँखों को  
हो जाता है मोतियाबिंद  

हमारी दुनिया  
संघर्षों और निर्बलताओं की दुनिया है  
और निर्बलताओं के बारे में सोचने को  
शायद तुम्हारा मस्तिष्क नहीं देता इजाज़त  

तुम्हारी दुनिया में समाये हैं  
सैकड़ों वायरस  
जो मकडी के जाल की तरह  
फैलते जाते हैं  
हमारी दुनिया सत्य की दुनिया है  
और सत्य हमेशा संघर्षवान होता है  

जैसे हमारे अनेकानेक उत्पाद  
जन्म लेते ही तुम्हारे हो जाते हैं  
इसी तरह  
हमारे दुःख,दर्द क्यों नहीं ले लेते?  

हाँ  
जब तुम्हें लेने होते हैं पुरस्कार  
बड़े-बड़े सम्मान  
या चमचमाना होता है 
दूधिया रौशनी में  
तब तुम मिटाना चाहते हो 
हमारा अन्धकार  

पर हमारा अन्धकार तो  
हमारी परछाई बन गया है  
जीवन भर  
रहेगा हमकदम  
और उस पार का भी क्या कहना  
आखिर ईश्वर भी तो तुम्हारी खूँटी से बँधा है

1 comment:

Unknown said...

हमारे शब्द सीमित हैं
और शब्दों के मायने भी
हमारी भुजाएँ
पहाड़ काटने वाली शक्ति पाकर
बँधी रहती हैं
और हमें नहीं सिखाया जाता
इच्छाएँ करना
बल्कि हम स्वतः ही सीख जाते हैं
इच्छाओं और अभिलाषाओं का दमन करना


kitni sateek baat kahi hai
padh kar man ko bahut achha laga