Saturday, May 9, 2009

अवधारणाएं

हम अक्सर बहुत सारी अवधारणाएं सच मान लेते हैं
गाहे-बगाहे,जाने -अनजाने
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हमें दिखाई देता है
सूरज का हर शाम पर्वत पार सो जाना
और अल सुबह मेहनती किसान की तरह जाग जाना
हमें चाँद का आकार लगता है
अनामिका के नाखून से छोटा
धरती लगती है तश्तरी की तरह चपटी
और हमें इन्द्रधनुषी रंग दिखते हैं
आसमान के कैनवास पर
एक परिपक्व कलाकार की कच्चे रंगों से उकेरी गयी तस्वीर
थोडी देर में रंग धुल जाते हैं
चित्रकार पुनः बना देता है
रंग पुनः मिट जाते हैं
और बनाने मिटने का सिलसिला चलता रहता है अनवरत
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लेकिन बिना सूरज,चाँद पर जाये
बिना धरती की वक्रता मापे
और बिना इन्द्रधनुषी रंगों की गुणवत्ता परखे
हमें मालूम है
सूरज का शाम को दिखाई न देना है हमारी दृश्य सीमा
जो क्षितिज के उस पार नहीं जा सकती
चाँद का आकार नाखून से अनंत गुना ज्यादा है
जो समेट सकता है दुनिया के कई देश
धरती है गोल
और लट्टू की तरह चक्कर लगाती है अपनी धुरी पर
और हमें पता है
इन्द्रधनुषी रंग कच्चे या पक्के न होकर
हैं श्वेत प्रकाश के विवर्तन का परिणाम
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रात के पौने तीन बजे
तुमने पूछा है 'platonic love' का meaning
मैं सुबह तक जानने की कर रहा हूँ कोशिश
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बजाये इसके की धोती बांधे मास्टरजी ने हमें सिखाये हैं
मीरा कृष्ण के प्रेम गीत
दुष्यंत-शकुंतला और विक्रम-उर्वशी की प्रेम कहानी
या गोपियों की विरह कथाएं
आज मैंने पहचाना है प्रेम
और मुझे प्रेम की अवधारणा सच्ची लगी है

::: :) DC (: ::::

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