Saturday, May 9, 2009

सुबह-सुबह खिलती हुई धूप
और फुदकते हुए पंछी
हाँ ये समय है
इमली वाली गली में दर्जी की दुकान खुलने का
और चूड़ी वाले का महिलाओं को रोककर चूड़ी पहनने का आग्रह करने का
.
.
तुम मसरूफ हों
हो सकता है गूँथ रही हो आटा
और हवा बिखरा देती है मुँह पर गेसू
तुम झुँझलाकर बार-बार कोहनी से करती हो पीछे
या हो सकता है
सोलह सोमवार व्रत रखने के तुम्हारे संकल्प का आज है तेरहवां सोमवार
तुम दुपट्टे का पल्लू पकडे सिर झुकाए
जल चढाने जा रही हो पुराने शिव मंदिर
मुमकिन है
तुम आँगन से सीधे बाहर आते कमरे में
जो दो तरफ से खुला है
अपनी सहेलियों के साथ बुन रही हो स्वेटर
अचानक हंस पड़ती हो खिलखिलाकर
.

शहर के बाहर एकांत में बैठा मैं चाहता हूँ
अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय निकालकर तुम आओ मिलने
और मुझे सुनाओ
कैसे रोटी तवे पर रखते-रखते आज फिर से तुम्हारा हाथ जल गया
या मंदिर के रास्ते में कैसे लोटा तुम्हारे हाथ से छूट गया
और सामने की दुकान पर बैठे लड़के तुम पर हंस पड़े
या तुम्हारी वो कौन सी सहेली को
तुम्हारा मुझसे मिलना पसंद नहीं
.
.
इच्छा होती है
कि भुलाकर अपनी निराश भावुकता
और मिटाकर थोपी गयी नैतिकता
थोडा जी लूँ तुम्हारे प्यार की मासूमियत
आज कर लें जी भर के बातें
.
लेकिन तुम हमेशा की तरह
शायद आज भी मसरूफ हों

::: :) DC (: :::

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