Sunday, May 10, 2009

समय का ये कौन सा दौर है
लगता है
मौसम ने घोंट के सारी संवेदनाएं
घोल दी है तन्हाई
न स्मृति के फाटक पर यादों की दस्तक होती है
न चित्रों चलचित्रों से हास्य रुदन की भावनाएं आती हैं
बस विचारों की खींचातानी मची रहती है
.
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सूरज लगता है कोई बंधुआ मजदूर
मद्धम पड़ गयी है उसके चेहरे की लालिमा
क्योंकि करवाया जा रहा है जबरन कठोर परिश्रम

दुनिया मुर्दों की बस्ती दिखती है
जिसमें आदमी बना है कठपुतली
और उसकी गतिविधियाँ
परसंचालित मशीनी क्रियाकलाप
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भावनाएं यदि सच में मर गयी हें
तो क्यूँ नहीं देते इन लाचार पेडों को आराम
जो निर्जन बस्ती में बेवजह oxygen दे रहे हैं

और यदि भावनाएं अभी तक हैं जिंदा
तो परखने का होता है मन
कोई पकड़ ले नसेनी
तो मैं आसमान पर चढ़ कर
उतार लूँ चाँद
और देखूं
कितने बच्चे मामा के खोने से होते हैं ग़मगीन
और कितने प्रेमी अपनी महबूबा के वियोग में करते हैं आत्महत्याएँ


असलियत तो ये है
कि जो है वही रहता है
फिर ना जाने इस खींचातानी और उधेड़बुन से
मुझे मिलती है कौन से ग्यारहवे रस की अनुभूति

Saturday, May 9, 2009

अवधारणाएं

हम अक्सर बहुत सारी अवधारणाएं सच मान लेते हैं
गाहे-बगाहे,जाने -अनजाने
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हमें दिखाई देता है
सूरज का हर शाम पर्वत पार सो जाना
और अल सुबह मेहनती किसान की तरह जाग जाना
हमें चाँद का आकार लगता है
अनामिका के नाखून से छोटा
धरती लगती है तश्तरी की तरह चपटी
और हमें इन्द्रधनुषी रंग दिखते हैं
आसमान के कैनवास पर
एक परिपक्व कलाकार की कच्चे रंगों से उकेरी गयी तस्वीर
थोडी देर में रंग धुल जाते हैं
चित्रकार पुनः बना देता है
रंग पुनः मिट जाते हैं
और बनाने मिटने का सिलसिला चलता रहता है अनवरत
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लेकिन बिना सूरज,चाँद पर जाये
बिना धरती की वक्रता मापे
और बिना इन्द्रधनुषी रंगों की गुणवत्ता परखे
हमें मालूम है
सूरज का शाम को दिखाई न देना है हमारी दृश्य सीमा
जो क्षितिज के उस पार नहीं जा सकती
चाँद का आकार नाखून से अनंत गुना ज्यादा है
जो समेट सकता है दुनिया के कई देश
धरती है गोल
और लट्टू की तरह चक्कर लगाती है अपनी धुरी पर
और हमें पता है
इन्द्रधनुषी रंग कच्चे या पक्के न होकर
हैं श्वेत प्रकाश के विवर्तन का परिणाम
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रात के पौने तीन बजे
तुमने पूछा है 'platonic love' का meaning
मैं सुबह तक जानने की कर रहा हूँ कोशिश
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बजाये इसके की धोती बांधे मास्टरजी ने हमें सिखाये हैं
मीरा कृष्ण के प्रेम गीत
दुष्यंत-शकुंतला और विक्रम-उर्वशी की प्रेम कहानी
या गोपियों की विरह कथाएं
आज मैंने पहचाना है प्रेम
और मुझे प्रेम की अवधारणा सच्ची लगी है

::: :) DC (: ::::
सुबह-सुबह खिलती हुई धूप
और फुदकते हुए पंछी
हाँ ये समय है
इमली वाली गली में दर्जी की दुकान खुलने का
और चूड़ी वाले का महिलाओं को रोककर चूड़ी पहनने का आग्रह करने का
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तुम मसरूफ हों
हो सकता है गूँथ रही हो आटा
और हवा बिखरा देती है मुँह पर गेसू
तुम झुँझलाकर बार-बार कोहनी से करती हो पीछे
या हो सकता है
सोलह सोमवार व्रत रखने के तुम्हारे संकल्प का आज है तेरहवां सोमवार
तुम दुपट्टे का पल्लू पकडे सिर झुकाए
जल चढाने जा रही हो पुराने शिव मंदिर
मुमकिन है
तुम आँगन से सीधे बाहर आते कमरे में
जो दो तरफ से खुला है
अपनी सहेलियों के साथ बुन रही हो स्वेटर
अचानक हंस पड़ती हो खिलखिलाकर
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शहर के बाहर एकांत में बैठा मैं चाहता हूँ
अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय निकालकर तुम आओ मिलने
और मुझे सुनाओ
कैसे रोटी तवे पर रखते-रखते आज फिर से तुम्हारा हाथ जल गया
या मंदिर के रास्ते में कैसे लोटा तुम्हारे हाथ से छूट गया
और सामने की दुकान पर बैठे लड़के तुम पर हंस पड़े
या तुम्हारी वो कौन सी सहेली को
तुम्हारा मुझसे मिलना पसंद नहीं
.
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इच्छा होती है
कि भुलाकर अपनी निराश भावुकता
और मिटाकर थोपी गयी नैतिकता
थोडा जी लूँ तुम्हारे प्यार की मासूमियत
आज कर लें जी भर के बातें
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लेकिन तुम हमेशा की तरह
शायद आज भी मसरूफ हों

::: :) DC (: :::

Tuesday, May 5, 2009

एक यातना

यह यातना है
जिसके बारे में कुछ नहीं कहा जाना चाहिए
पर ये सच है कि
जब दुनिया देख रही है
काले स्याह अंधकार में रंगीन सपने
रात्रि के तीसरे पहर में
निद्राविहीन मैं
चाँद,तारों और चमगादड़ो का साथी बना हुआ हूँ

कुछ ख्वाबो को बुनता हूँ
फिर तोड़ता हूँ
टूटे ख्वाबो को
दोबारा जोड़ता हूँ

इस घोर तिमिर में
दीवारों से कुछ कुरेदता हूँ
दसो दिशाओं में
कोई आहट खोजता हूँ

तमाम विषमतायें
अनजान त्रासदियाँ
और सघन कुंठाओं से ग्रस्त
विस्तृत नभ के सुदूर कोने में
शांत घरोंदा ढूँढता हूँ

यह यातना है कि
रात्रि के तीसरे पहर में
मैं निद्राविहीन हूँ

::: :) DC (: :::