Monday, September 6, 2010

"शहर मर गया था " (भोपाल त्रासदी पर ग़ज़ल )

तीसरा पहर गया था ,
बाद में शहर मर गया था |

बस्तियाँ उजड़ गयी थी ,
जिधर हवा का असर गया था |

कितना भी वह बचा ले ,
पैर आदमी पर गया था |

हाथ ऊपर को उठते थे ,
जाने खुदा किधर गया था |

एक से दूसरी पीढ़ी तक ,
मुसलसल ज़हर गया था |

देश हाथ मलता रहा ,
और मुलजिम घर गया था |

जुर्म की तलाश में ,
एक अरसा गुज़र गया था |

अच्छा होता ,वह सोचता है ,
यदि उस रात मर गया था |
...
......

1 comment:

Sourabh said...

bhai jabardast!!!!!!!!!!!!