घूमा करती हैं
सिनेमा और पार्क
मानो मिल रहे हों
चुम्बकों के दो विपरीत ध्रुव
मिलते ही एकांत
घंटों बतियाती हैं मोबाइल पर
गज़लें,गुलाब
कॉलेज,किताब
मौसम,हवा
बादल,घटा
वफाई,बेवफाई
और गढे मुर्दों की खुदाई
उन्हें आती हैं सैकडों दलीलें
शैम्पू से लेकर इकॉनोमी तक
ये जहान छोटा हो जाता है
प्यार करने वाली लड़कियों के आगे
उनकी बातों में
लहराता है आत्म-विश्वास
और आँखों से छलकता है
युद्ध-विजय का भाव
प्यार करने वाली लड़कियां
प्रेम में हो जाती हैं सतर्क
और वार्तालाप के उपरांत
नंबर कर देती हैं 'डिलीट'
वे लड़कियाँ जिन्हें प्यार करना नहीं आता
गाँव और कस्बों की होती हैं
वे प्रेम में पड़कर
खो देती हैं वाचालता
और ओढ़ लेती हैं शर्म का साया
वे भूल जाती हैं
रोटियों को गोल-मटोल बेलना
और दाल में नमक
चाय में चीनी डालना
उन्हें नहीं आता बतियाना
प्यार सुनने पर
हो जाती हैं लाल
और छू लेने पर
शर्म से दोहरी
वे होती हैं
माता,पिता की आज्ञाकारिणी
और रखती हैं
सोलह सोमवार का व्रत
प्यार न करने वाली लड़कियाँ
एकांत मिलते ही
ताका करती हैं आसमान
घंटों तक टुकुर-टुकुर
शायद
किसी फ़रिश्ते की आस में
जिसका उद्भव होगा
किसी जगमगाते सितारे की तरह
और निर्लिप्त होकर
शून्य से गुजरते हुए ले जायेगा
सुदूर आसमान में
विचरते बादलों की प्राचीर के पार
एक शुभ्र,धवल जहान में
7 comments:
गाम्व ,कस्बे और शहर की प्यार करने वाली लड़कियाँ बेहद खूबसूरत विषय लिया है आपने और उसका निर्वाह भी किया है बधाई -शरद कोकास
वाकई सही चित्रण किया है. प्रवाहमयी खूबसूरत रचना.
बहुत बेहतरीन चित्रण!! आनन्द आ गया.
धर्मेन्द्र बाबु
आपकी इस रचना को पहले भी पढ़ चुका हूँ | संयोग ही कहिये कि आज आपके ब्लॉग पर आना हुआ और इसे दुबारा पढ़ रहा हूँ |
एक बात तो है कि आपकी लयबद्धता का मैं कायल हो गया हूँ | विषय-वास्तु पर पकड़ का सहज ही अनुभव करा देती है आपकी लेखनी |
बहुत ही सुन्दर लिखते हैं आप, ये रचना भी पसंद आयी |
शुभकामनाओं के साथ
शशि सागर
Awesome........
hmm
शून्य से गुजरते हुए ले जायेगा
सुदूर आसमान में
विचरते बादलों की प्राचीर के पार
एक शुभ्र,धवल जहान में.
पटाक्षेप अच्छा था.
चीज़ों को देखने में Matureness की थोड़ी और ज़रूरत लगी.
As in:
"और वार्तालाप के उपरांत
नंबर कर देती हैं 'डिलीट'"
Technically तो अच्छा लगता है पर यदि शहरी लड़िकयां ऐसी होती हैं तो या तो कुछ ऐसा है जो उन्हें ऐसा बनता है या फ़िर 'Bigger Picture' , 'वृहद् द्दृष्टि' की कवी को आवश्यकता है. वैसे कविता में सब कुछ आ जाना संभव नहीं होता, ये बात भी सही है.
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