
शाम से कुछ गुमसुम सा था
रात हुई तो अपने कमरे में गया
किताबों के चंद पन्ने पलटे
कुछ देश दुनिया के समाचार सुने
फिर लाइट बुझाकर लेट गया
पर नींद थी आँखों से कोसों दूर
थोडा बाहर टहला
फिर सोने का एक और व्यर्थ प्रयास
.
.
.
तभी बाहर कुछ आवाजें सुनाई दी
खिड़की खोली तो आसमां में दिखाई दिया चाँद
जो अपनी चांदनी से कमरे को महकाने लगा
फिर खामोशी को तोड़ती कुछ कुत्तों की आवाजें
अचानक एक उमंग सी भर गयी
दिल धड़का ..हाथ फड़का
कलम उठाई और कागज़ जैसा जो भी दिखा
उस पर कुछ-कुछ लिख दिया
और एक सुखद एहसास के साथ चादर तान कर सो गया
सुबह जब आँख खुली तो देखा
सिरहाने एक नयी कविता मुस्कुरा रही थी